Thursday, November 21, 2024
spot_img
More
    Homeलाइफस्टाइलWorking Indian Women: कामकाजी भारतीय महिलाओं को करनी पड़ती है 'डबल शिफ्ट'

    Working Indian Women: कामकाजी भारतीय महिलाओं को करनी पड़ती है ‘डबल शिफ्ट’

    Working Women’s Burden: समाज में महिलाओं को पुरूषों के समान अधिकार दिलाने के संघर्ष ने भले ही भारतीय महिलाओं के लिए बाहर के दरवाजे खोल दिए, लेकिन उनके लिए यह स्वतंत्रता असमानता का एक नया आयाम साबित होती दिख रही है. भारत का समाज पितृसत्तात्मक है और यहां घर की पूरी जिम्मेदारी महिलाएं ही उठाती हैं, चाहे वे कामकाजी हों या न हों. यहां कामकाजी महिलाओं को अपना करियर बनाने के साथ- साथ घर की पूरी जिम्मेदारी भी संभालनी होती है, यानी वे हमेशा दोहरी भूमिका निभा रही होती हैं.

    भारतीय महिलाएं दुनिया में सर्वाधिक कामकाजी महिलाओं में शामिल
    दुनिया में भारतीय महिलाएं सर्वाधिक कामकाजी महिलाओं में शामिल हैं. यहां की महिलाएं हर दिन औसतन 299 मिनट घर के काम करती हैं और 134 मिनट बच्चों की देखभाल करती हैं . इसके साथ ही घर का 82 फीसदी काम भी इन्हें ही करना होता है. यहां कभी-कभी स्थिति ऐसी होती है कि बहुत ही कम उम्र से काम के बोझ तले लड़कियों को स्कूल जाने नहीं दिया जाता, काम पर जाने नहीं दिया जाता और इस तरह उनकी आर्थिक आजादी का सपना चूर-चूर हो जाता है.

    कामकाजी महिलाओं पर ‘डबल शिफ्ट या डबल ड्यूटी’ का बोझ
    महिलाओं के अधिकारों के लिए परचम लहराने वाली असंख्य महिलाओं ने लंबे समय तक समान अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी. देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाने, अच्छा करियर चुनने की आजादी और आर्थिक स्वतंत्रता हासिल करने का महिलाओं का यह संघर्ष रंग लाया. यह सुनने में भले ही अच्छा लगे कि 21वीं सदी की महिलाएं कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं, लेकिन वास्तव में पूंजीवाद के कारण उत्पन्न मांगों और पितृसत्तात्मक सोच ने महिलाओं पर ‘डबल शिफ्ट या डबल ड्यूटी’ बोझ डाल दिया. अब महिलाओं को घर के काम के साथ बाहर का काम भी संभालना होता है.

    मध्यम वर्गीय परिवार की महिलाओं को भुगतना पड़ता है सबसे अधिक खामियाजा
    समाज की इस सोच का सबसे अधिक खामियाजा मध्यम वर्गीय परिवार की महिलाओं को भुगतना होता है. इस विषय पर अवार्ड प्राप्त पत्रकार नीलांजना भौमिक ने बहुत ही विस्तार से अपनी किताब ‘लाइज ऑवर मदर्स टोल्ड अस ‘ में लिखा है. नीलांजना कहती हैं कि क्या महिलाओं को यह सब बहुत बड़ी कीमत चुकाकर मिला है. उन्होंने साक्षात्कार और आंकड़ों के जरिये 21वीं सदी की महिलाओं की स्थिति बयां की है. नीलांजना लैंगिक असमानता और विकास के मुद्दे पर लिखती रहीं हैं और उन्होंने तीन अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किए हैं. वह बीबीसी, टाइम मैगजीन, वाशिंगटन पोस्ट, अल जजीरा और नेशनल जियोग्राफिक मैगजीन से जुड़ी रही हैं.

    (इनपुट-आईएएनएस)

    ये भी पढ़ें- Hair Wash: क्या डेली हेयर वॉश करना सही है? जानिए हफ्ते में कितनी बार धोने चाहिए बाल

    RELATED ARTICLES

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here

    - Advertisment -

    Most Popular

    Recent Comments