Death Penalty: केंद्र ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सरकार एक एक्सपर्ट कमेटी नियुक्त करने पर विचार कर रही है जो देखेगी कि फांसी की सजा पाए कैदियों के लिए कम दर्दनाक कोई तरीका है या नहीं. केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल (एजी) आर. वेंकटरमणी ने कोर्ट से कहा कि विचार-विमर्श चल रहा है और यदि अदालत एक सप्ताह के बाद इस मामले को उठाएगी, तो वह जवाब देने में अधिक सक्षम होंगे. उन्होंने कहा, मैंने एक समिति का गठन का सुझाव दिया है और हम उस दिशा में काम कर रहे हैं व कुछ नाम जुटा रहे हैं.
वेंकटरमणी के बयान को दर्ज करते हुए चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि एजी का कहना है कि सरकार समिति की नियुक्ति पर विचार कर रही है. उन्होंने मामले पर जुलाई में सुनवाई करने का फैसला किया. 21 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसे एक्सपर्ट पैनल के गठन को लेकर कोई समस्या नहीं है, साथ ही केंद्र से इस पर जानकारी जुटाने के लिए कहा कि क्या मृत्युदंड के लिए कोई दर्दरहित तरीका है. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि इस पहलू को विज्ञान और प्रौद्योगिकी की नजर से देखा जाना चाहिए. पीठ ने पूछा, क्या हमारे पास भारत या विदेशों में इससे संबंधित कोई डेटा है, जो वैकल्पिक तरीकों से मौत की सजा पर बात करे?
कोर्ट में उस जनहित याचिका पर सुनवाई हो रही थी, जिसमें मौत की सजा के दोषी को फांसी पर लटकाने की वर्तमान प्रथा को खत्म करने की मांग की गई है, जिससे लंबे समय तक पीड़ा होती है. याचिका में तर्क दिया गया है कि फांसी में कैदी के मरने तक उसे गर्दन से लटका कर रखा जाता है. इसके बाद डॉक्टर जांच करते हैं कि व्यक्ति की मृत्यु हुई है या नहीं, इसलिए फांसी अमानवीय है.
याचिका में कहा गया है कि जीने के अधिकार के तहत प्राकृतिक रूप से जीवन का अंत भी होना चाहिए. दूसरे शब्दों में, मरते हुए व्यक्ति का भी गरिमा के साथ मरने का अधिकार शामिल होना चाहिए, जब उसका जीवन समाप्त हो रहा हो. शीर्ष अदालत ने इस पर केंद्र को नोटिस जारी किया था कि जिस दोषी का सजा के कारण जीवन समाप्त होना है, उसे फांसी की पीड़ा सहने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.
(इनपुट-आईएएनएस)
यह भी पढ़ें- Bihar: मुजफ्फरपुर के तीन घरों में लगी आग, जिंदा जल गईं 4 बहनें, 6 घायल