Lateral Entry: केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने ‘लेटरल एंट्री’ पर मचे सियासी बवाल को लेकर मीडिया से बातचीत की. उन्होंने कहा कि मेरी पार्टी इससे कतई सहमत नहीं है. मैं खुद इसे सरकार के समक्ष रखूंगा. केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा, ”मैं और मेरी पूरी पार्टी स्पष्ट राय रखती है कि सरकार को कोई भी नियुक्ति आरक्षण के प्रावधानों को ध्यान में रखकर करना चाहिए. निजी क्षेत्रों में ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं है. ऐसे में कोई भी सरकारी नियुक्ति होती है, चाहे किसी भी स्तर पर हो, उसमें आरक्षण के प्रावधानों को ध्यान में रखना चाहिए. इसमें नहीं रखा गया है, यह हमारे लिए चिंता का विषय है. मैं खुद सरकार का हिस्सा हूं और मैं इसे सरकार के समक्ष रखूंगा. हां… मेरी पार्टी इससे कतई सहमत नहीं है.”
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज की घटना पर चिराग पासवान ने कहा कि यह गलत है, इस तरह से अगर आप सेलेक्टिव होकर आपराधिक घटनाओं को देखेंगे. एनडीए के राज्यों की घटनाओं को विपक्ष उठाएगा. लेकिन, अपने राज्य में हुई घटना पर खामोश रहेगा. यह गलत है. मैं कहता हूं कि यह सोच ही गलत है. जरूरत है कि आप लोग एकजुट होकर इस आपराधिक मानसिकता के खिलाफ लड़ें. सत्तापक्ष हो या विपक्ष, कोई भी इस घटना को बर्दाश्त नहीं कर सकता. ऐसे में जब तक हम एक साथ नहीं आएंगे, इस तरह के अपराधियों को बल मिलता रहेगा. जरूरत है ऐसे उदाहरण रखने की, ताकि भविष्य में कोई भी ऐसे जघन्य व निंदनीय घटना को अंजाम नहीं दे सके.
बता दें कि लेटरल एंट्री का मतलब निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधी भर्ती से है. इसके माध्यम से केंद्र सरकार के मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के पदों पर भर्ती की जाती है. दरअसल, विभिन्न मंत्रालयों में सचिव, उपसचिव सहित अन्य पदों पर अधिकारियों की भर्ती यूपीएससी एग्जाम से होती है. इसे देश की सर्वाधिक कठिन परीक्षा माना जाता है. जिसमें सफल होना निसंदेह किसी भी परीक्षार्थी के लिए चुनौतीपूर्ण होता है. इस परीक्षा का आयोजन प्रतिवर्ष होता है. इसमें लाखों विद्यार्थी कई वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद हिस्सा लेने की हिम्मत जुटा पाते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी इस बात की गारंटी नहीं होती कि वो इस परीक्षा में सफल हो पाएंगे या नहीं.
यूपीएससी परीक्षा मूल रूप से तीन चरणों में होती है. पहला प्रीलिम्स, दूसरा मेन्स और तीसरा साक्षात्कार. इन चरणों के गुजरने के बाद परीक्षार्थियों को किसी भी मंत्रालय में विधिवत रूप से अपने कार्यों का निर्वहन करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है. इसके बाद वे इस पद का निर्वहन करने में सक्षम हो पाते हैं. वहीं, कई वर्षों तक किसी निश्चित मंत्रालय में कार्यरत रहने के बाद उन्हें सचिव या उपसचिव जैसे पदों की जिम्मेदारी संभालने का मौका मिलता है, लेकिन अब केंद्र सरकार ने एक ऐसी व्यवस्था विकसित करने का फैसला किया है, जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति बिना यूपीएससी की परीक्षा दिए ही इन पदों की जिम्मेदारी संभालने में सक्षम हो पाएगा. केंद्र सरकार की इसी व्यवस्था को लेकर सियासी बवाल मचा हुआ है.
(इनपुट-आईएएनएस)
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