Saturday, November 23, 2024
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    सतुआनी गंगा स्नान में 40 हजार से अधिक लोगों ने लगाई श्रद्धा की डुबकी, मां काली मंदिर बखोरापुर रहा गुलजार

    Satuan Festival 2024: बड़हरा: चैत सतुआनी भोजपुरी संस्कृति का काल बोधक पर्व है. यह पर्व बिहार, झारखंड समेत कई राज्यों में मनाया है. सतुआन पर्व पर बड़हरा प्रखंड के गंगा नदी घाटों पर श्रद्धालु गंगा नदी में आकर आस्था की डुबकी लगाते हैं. रविवार को अहले सुबह से गंगा स्नान करने के लिए लोग नदी घाट की ओर जा रहे थे. पीपरपाती, बलुआ, महुली, सिन्हा, नेकनाम टोला, बबुरा, गंगापार खवासपुर महुली घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़ रही. वहीं, महुली घाट पर बने पीपापुल पर भी भीड़ जमी रही. इन सभी नदी घाटों पर करीब 40 हजार से अधिक लोगो ने गंगा स्नान किया. उसके बाद पूजा अर्चना कर सत्तू व आम के टिकोला का सेवन किया. सबसे खास रहा कि बलुआ, महुली, सिन्हा व अन्य जगहों पर मेले लगे हुए थे. इन मेले में जलेबी, पटौरा, शंकर मिठाई, छोला व श्रृंगार की वस्तुएं बिक रही थीं. कुछ श्रद्धालु नदी घाटों पर पूजा अर्चना के बाद सतमेझरा सत्तू और आम के टिकोला की चटनी का भी सेवन कर रहे थे. वहीं, गंगा स्नान के बाद कई श्रद्धालुओं ने अपने बच्चों का मुंडन भी कराया. मां काली मंदिर, बखोरापुर और अन्य मंदिरों में माता रानी का दर्शन करने के लिए भी लोगों का हुजूम उमड़ रहा था.

    चैत सतुआन से सभी मांगलिक कार्य होते हैं संपन्न
    ज्ञानपुर गांव निवासी आचार्य नर्वदेेेेश्वर उपाध्याय ने बताया कि हिंदू पतरा में चैत सतुआन के बाद सूर्य के मीन से मेष राशि में चले जाने से ग्रीष्म ऋतु आरंभ हो जाता है. यानि हिंदू नया साल. इसलिए इस मौसम में शरीर को ठंडक देने वाले आहार के सेवन का प्रावधान है. इस समय तक नए चने का सत्तू भी आ जाता है. आम के टिकोले से बनी चटनी शरीर को ठंडक प्रदान करने के साथ सुपाच्य भी होती है. इसलिए सतुआनी में नया सत्तू खाने का रिवाज है. गांवों में देवी मंदिर में पूजा करने के बाद जौ और चने की सत्तू आम की चटनी के साथ खाई जाती है. इस मौके पर लोग गरीबों को दान भी देते हैं. नर्वदेेेेश्वर उपाध्याय ने बताया कि सूर्य का उच्च राशि में प्रवेश के बाद खरमास की समाप्ति हो जाती है. इसी दिन से सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. दूसरे महीनों की अपेक्षा सूर्य ज्यादा प्रभावशाली होता है. सूर्य का उच्च राशि में प्रवेश शुभ माना गया है. यह पर्व अन्य राज्यों में विभिन्न नामों से जाना जाता है. बिहार में इसे ‘सतुआन’, केरल में ‘विशु’, असम में ‘बिहू’, पंजाब में ‘वैशाखी’, मिथिलांचल में ‘सतुआनि’ और ‘जुड़ शीतल’ के नाम से मनाया जाता है.

    सत्तू खाने का तरीका जान हो जाएंगे हैरान
    सतुआन पर गंगा स्नान के बाद खेती करने वाले किसानों के दियारा क्षेत्र व नदी किनारे बैठकर सत्तू सेवन करने का तरीका जानकर आश्चर्य उन्हें होगा जो दो मिनट में मैगी खाते हैं. सतुआ गूंथने में मिनटों नहीं लगता है. न ही आग पर पकाने की जरूरत और न ही बर्तन की आवश्यकता है. सात भुने अनाज के आटे से बने सतुआ (सतमेझरा) को घोल कर पी भी सकते हैं. इसे गुंथ कर भी खा सकते हैं. इसे गमछा बिछा कर पानी डाल कर और थोड़ा सा नमक मिला कर तैयार किया जा सकता है, जिसका स्वाद बेजोड़ होता है.

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    गर्मी के आ जाने का सूचक है सतुआन
    उत्तर भारत की लोक संस्कृति में यह प्रकृति से जुड़ाव का पर्व है. आज से कुछ दशक पूर्व सत्तू को गठरी में बांधकर लंबी यात्रा पर ले जाया जाता था. ठेंठ देहातों में यह परंपरा अभी भी जीवित है. शहरों में लोग सत्तू भूल गए. सतुआन के दिन अब औपचारिकता निभाई जाती है. आम के टिकोले को पीसकर चटनी बनाना और साथ में सत्तू घोलकर पहले सूर्य देवता को चढ़ाने के बाद प्रसाद में ग्रहण किया जाता है. सत्तू स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्व रखता है. इसे पीने से स्मरण शक्ति बढ़ती है, पढ़ने में मन लगता है, पेट ठंडा रहता है. यह दिव्य पर्व सतुआन, जो गर्मी के आ जाने की घोषणा करता है और बताता है कि अब मौसम तेजी से गर्म होगा. ऐसे में, सत्तू एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जो शीतलता दे पाएगा.

    यह भी पढ़ें- Bhojpur News: बड़हरा गंगा नदी में डूबने से किशोरी की मौत

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