पटना: बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार राज्य में मामलों की जांच के लिए सीबीआई को दी गई सहमति को वापस ले सकती है. यदि ऐसा हुआ तो सीबीआई को बिहार में जांच के लिए पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी. हाल ही में सीबीआई ने राजद एमएलसी सुनील सिंह, पूर्व एमएलसी सुबोध राय, राज्यसभा सांसद अहमद अशफाक करीम और फैयाज अहमद के ठिकानों पर छापेमारी की थी. इसके बाद महागठबंधन के सभी दलों ने आरोप लगाया कि केंद्र द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों के लिए केंद्रीय जांच एजेंसी का इस्तेमाल किया जा रहा है. रेलवे में नौकरी के बदले जमीन मामले में लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के सदस्य भी आरोपी हैं.
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया है कि बिहार में बिना राज्य सरकार के अनुमति के सीबीआई की एंट्री पर रोक लगा दी गई है. हालांकि अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है. बिहार द्वारा सीबीआई से ‘आम सहमति’ वापस लेने की संभावना पर मीडिया से बात करते हुए, भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद ने दावा किया कि अपने सबसे बड़े घटक राजद से जुड़े भ्रष्टाचार घोटालों के अलावा, महागठबंधन आंतरिक राजनीतिक अंतर्विरोधों के कारण असुरक्षित महसूस कर रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन सिर्फ राजद को बचाने के लिए देश के संघीय ढ़ांचे और लोकतांत्रिक ताने-बाने को चुनौती देना चाहता है.
बता दें कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की जांच के लिए भारत की ब्रिटिश सरकार ने 1941 में विशेष पुलिस प्रतिष्ठान की स्थापना की. युद्ध के बाद यह एजेंसी दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के प्रावधानों के तहत काम करती रही. आज भी सीबीआई का ऑपरेशन इसी कानून के तहत किया जाता है. शुरुआत में यह भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए जिम्मेदार था, लेकिन धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ता गया.
यदि कोई राज्य सरकार सीबीआई से आपराधिक मामले की जांच करने का अनुरोध करती है, तो सीबीआई को पहले केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी होगी. वहीं, भारत का सर्वोच्च न्यायालय या राज्यों के उच्च न्यायालय भी मामले की जांच के लिए सीबीआई को आदेश दे सकते हैं.