पटना: आजादी के 75वें साल में पूरा देश अमृत महोत्सव मना रहा है. गांव की पगडंडियों से लेकर शहर की सड़कों तक में हाथ में तिरंगा लिए बच्चों से लेकर युवा और बुजुर्ग दिख रहे हैं. इस अमृत महोत्सव में हम उन रणबांकुरों को नमन कर रहे हैं जिनकी रणनीति और साहस से हमें आजादी मिली. ऐसे ही महान योद्धा गोपालगंज के कुचायकोट के करमैनी मोहब्बत निवासी स्व. चंद्रगोकुल राय थे, जिन्होंने 12 वर्ष की उम्र में ही ब्रिटिश सरकार के खिलाफ ऐसी बगावत की रणनीति बनाई जिससे अंग्रेजों की नींद हराम हो गई.
असहयोग आंदोलन के बाद अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत तेज हो गयी थी. क्रांतिकारी वीर युवा की टीम गांव-गांव घूमकर आजादी के नारे बुलंद कर युवाओं में आजादी के जज्बे जगा रही थी. उस समय कुचायकोट के करमैनी मोहब्बत गांव के चंद्रगोकुल राय की उम्र महज 12-13 साल थी, लेकिन देश की पुकार उनके मनमस्तिष्क पर ऐसा चढ़ा कि इतनी कम उम्र में ही क्रांतिकारियों की टीम में वे शामिल हो गए.
आजादी के दीवानों की टोली फिरंगियों के खिलाफ सड़कों पर थी और गीत व कविता से देशवासियों में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की लहर पैदा कर रही थी. राय की कविता व भाषण इनकी आग में घी का काम करते थे. लोग बताते हैं कि राय जब ‘सुनर सुघर भूमि भारत के रहे राम, उहे आज भइले शमशान रे फिरंगिया’ गाते थे, तो आजादी के दीवाने क्रांतिकारियों के नारे गांव में गूंजने लगते थे. गांव के ही महाराज राय और कमला बाबू स्वतंत्रता आंदोलन में पहले से ही लगे हुए थे. इन्हीं से प्रेरित होकर उन्होंने अंग्रेज विरोधी आंदोलन को और तेज कर दिया. चंद्रगोकुल राय के साथ कुछ दिन गुजारने वाले शिक्षक रामाशंकर राय बताते हैं कि अपनी रणनीति बनाने में पारंगत चंद्रगोकुल राय कुछ ही दिनों में आजादी के उन महानायकों में शामिल हो गये, जिनके नाम से अंग्रेज अफसरों के पसीने छूटते थे.
1929 में उनकी मुलाकात राजापुर कोठी हरपुर जान के राष्ट्रवादी जमींदार राजा कृष्ण बहादुर सिंह से हुई. वहां इन्हें गुरुकुल का संरक्षक बना दिया गया. उस गुरुकुल में पढ़ाई के साथ छात्रों को जंग-ए-आजादी के लिए भी प्रेरित किया जाता था. बताया जाता है कि इसी गुरुकुल से आंदोलन की रणनीतियां तैयार होने लगी और राय का भी कद बढ़ने लगा. अब चंद्रगोकुल राय की गतिविधियां फिरंगियों को परेशान करने लगी थी. इसी दौरान छपरा में सभा करते हुए अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद जब वह जेल से बाहर निकले तो महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े. इस आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई. इसी क्रम में मीरगंज के पास इटवा पुल को ध्वस्त कर दिया और रेलवे लाइन को भी उखाड़ दिया. इसके बाद जलालपुर से अंग्रेजों ने फिर इन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया. अब्दुल गफूर, कमला बाबू, महाराज राय आदि स्वतंत्रता सेनानियों के साथ चंद्रगोकुल राय छपरा व पटना कैंप जेल में रहे.
चंद्रगोकुल राय के पुत्र दीपक राय ने बताया कि शिक्षा को लेकर उनका प्रयास जीवन के अंतिम काल तक बना रहा. मिडिल स्कूल कुचायकोट, सोनहुला हाइस्कूल व डीएवी गोपालगंज में बतौर शिक्षक उन्होंने शिक्षा की ज्योति जलायी. देश आजाद होने के बाद कुछ वर्षों तक उन्होंने पश्चिम बंगाल में जाकर मजदूरों का भी नेतृत्व किया. चंद्रगोकुल राय को 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया. 11 अप्रैल 1991 को चंद्रगोकुल राय का निधन हो गया.
(इनपुट-आईएएनएस)
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