APJ Abdul Kalam Death Anniversary: भारत के महानतम राष्ट्रपतियों में शुमार मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम की गिनती देश के उन विभूतियों में होती है, जिन्होंने विकसित और संप्रभु राष्ट्र की नींव रखी हो. आइए उनके पुण्यतिथि पर जानते हैं बिहार से जुड़े वो किस्से जिन्होंने महामहिम को दुविधा में डाल दिया था.
बिहार में लालू राज के पतन और नीतीश राज की शुरुआत फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में ही हो चुकी थी. पर यह सबकुछ होते हुए भी, पूर्ण बहुमत वाला जनादेश किसी को नहीं मिला था.
कुछ इस प्रकार बना विधानसभा में समीकरण
चुनाव परिणाम के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि सत्ता का केंद्र तीन अलग-अलग धुरियों पर टिका हुआ है. इस चुनाव में 210 सीटों पर लड़ने वाली RJD को मात्र 75 सीटें मिलीं. राज्य के यादव बहुल क्षेत्रों में भी पार्टी को निराशा हाथ लगी. वहीं NDA के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे नीतीश कुमार को 55 सीटें मिलीं. राज्य में BJP भी 103 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी, जबकि उसने 37 सीटों पर जीत हासिल की.
रामविलास पासवान बने सत्ता के केंद्र
फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने 29 सीटों पर जीत हासिल की. ऐसे में, यह तो निश्चित हो चुका था कि बिना उनके समर्थन से लालू या नीतीश दोनों में से किसी की भी सरकार नहीं बन सकती. लालू ने पासवान को मनवाने के लिए केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस को भी आगे किया, लेकिन पासवान मुस्लिम मुख्यमंत्री के लिए अड़े हुए थे.
ऐसे सवालों में घिरते गए महामहिम अब्दुल कलाम
केंद्र में प्रधानमंत्री के पद पर डॉ. मनमोहन सिंह थे, वहीं सरकार में बिहार के दो नाम लालू और पासवान भी शामिल थे. पासवान किसी भी कीमत पर लालू को समर्थन नहीं देना चाहते थे, उनकी नीतीश कुमार से बातचीत चल रही थी. जबकि लालू यादव को यह नागवार गुजरा. ऐसे हालातों में लालू यादव ने केंद्र सरकार और राज्यपाल पर विधानसभा भंग करवाने का दबाव बनाना शुरू कर दिया.
कलाम साहब देने वाले थे इस्तीफा, राष्ट्रहित के मुद्दे पर मनमोहन ने समझाया
विधानसभा भंग होने पर एनडीए की ओर से कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया, ऐसे में राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की अंतरात्मा उनके ऊपर ही सवालिया निशान लगा रही थी. नैतिक तौर पर इन सब के लिए वो खुद को जिम्मेदार मान रहे थे. उन्हें ऐसा लग रहा था कि बिहार में विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लगा कर उन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर किया है.
राष्ट्रहित को वरीयता देते हुए कलाम ने नहीं दिया इस्तीफा
कलाम अपना इस्तीफा देने ही वाले थे कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उनसे मिलने गए. कलाम ने जब यह वाक्या बताया तो भावुक हो गए. कलाम अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, ”मनमोहन सिंह ने उनसे कहा कि इस मुश्किल परिस्थिति में उनका इस्तीफा सरकार को भी अस्थिर कर सकता है. हो सकता है कि लोकसभा को भी भंग करने की नौबत आ जाए.” ऐसे हालातों में फिर अब्दुल कलाम ने अपने नैतिक मूल्यों के ऊपर राष्ट्रहित को वरीयता देते हुए इस्तीफा नहीं दिया.
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